अपने युग में सबको अनुपम,
ज्ञात हुई अपनी हाला,
अपने युग में सबको अदभुत,
 ज्ञात हुआ अपना प्याला, 
फिर भी वृद्धों से जब पूछा ?
-एक यही उत्तर पाया
कि अब ना रहे वो पीने वाले,
अब ना रही वह मधुशाला।।

एक बरस में एक बार ही,
जलती  होली की ज्वाला,
 एक बार ही लगती बाज़ी, 
जलती दीपों की माला ।। 

दुनियावालों किंतु किसी दिन,
आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली - रात दिवाली,
 रोज  मनाती मधुशाला ।।

मदिरालय जाने को घर से,
 चलता है पीने वाला,
 किस पथ से जाऊं असमंजस ?
 में है वह भोला भाला ।
अलग-अलग पथ बतलाते सब,
पर मैं यह बतलाता हूं,
राह पकड़ तू एक चला चल,
 पा जाएगा मधुशाला ।।

यम आयेगा साकी बनकर,
सात लिए काली हाला,
पीन होश में फिर आएगा,
 सूरह विशुद्ध यह मतवाला ।।

यह अंतिम बेहोशी अंतिम,
साकी अंतिम प्याला है, 
पथिक प्यार से पीना इसको,
फिर ना मिलेगी मधुशाला ।।

मेरे अधरों पर हो अंतिम,
वस्तु न तुलसी दल प्याला,
मेरी जीभा पर हो अंतिम, 
वस्तु न गंगाजल हाला ।।

मेरे शव के पीछे चलने,
वालों याद इसे रखना,
राम नाम है सत्य न कहना,
कहना सच्ची मधुशाला ।।

मेरे शव पर वो रोए हो,
जिसके आंसू में हाला,
आह भरे वो जो हो सुरभित,
मदिरा पीकर मतवाला ।।

दे मुझको वह कंधा जिनके,
पग मद डगमग होते हो, 
और जलू उस थोर जहां पर,
कभी रही हो मधुशाला ।।